हमारे इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में किसी को खास पद मिल जाना मेहनत की बात है या किस्मत की इस बात पर गंभीर चर्चा हो सकती है. हम कई बार देखते हैं की किसी बड़े पद में बिलकुल ही गैर जिम्मेदार लोगों को बैठा दिया जाता है जबकि लायक लोग उनकी जी हुजूरी करते नजर आते हैं. और खासकर आज के दौर में जब सोशल मीडिया अपने चरम सीमा पर है. बड़े बड़े अधिकारी जो UPSC या किसी स्टेट की बड़ी परीक्षा पास करके आते हैं उनके हाथ में बड़ी शक्तियां होती है लेकिन हम अक्सर देखते हैं कि वे लोग अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करने से बाज नहीं आते
सोर्स- एक साथी वेबसाइट FATAFAT NEWS में खबर लगी है जांजगीर चांपा के यंग कलेक्टर साहब की- https://fatafatnews.com/ जब कलेक्टर ने विधायक से कहा- चार लोग एक साथ ऑफिस के अंदर नहीं आ सकते…
कि जब विधायक 3 लोगों के साथ कलेक्टर साहब के दफ्तर में दाखिल हो रहे थे तो कलेक्टर साब, तमतमा गए और आमजन को बाहर का रास्ता दिखा दिया. कलेक्टर साहब ने अच्छा किया आरे भाई ये कुर्सी आज जनता की सेवा के लिए थोड़ी ना मिली है, विधायक जी को भी सोचना चाहिए था जो यंग अफसर सामने बैठा है वा बेतुकी बातों को सुनने के लिए थोड़ी ना वहां पर बैठा है. उस शख्स के पास जिला चलाने की जिम्मेदारी है और ऊपर से राजनीतिक लोगों का साथ भी होगा. वे विधायक और आम जनता की फरियाद सुनने के लिए थोड़ी बैठे हैं. यह बात भले ही और है कि विधायक जी को जनता ने चुना है लेकिन कलेक्टर्स को तो सर्विस कमिशन वाले चुनते हैं, और ये लोग विधायक जी तरह थोड़ी ना होते हैं जो घर घर जाकर वोट मांगते हैं 1 उंगली में स्याही लगावाने के लिए वोटर्स के सामने नतमस्तक हो जाते हैं. बल्की ये लोग किताब का पूरा ज्ञान घोल कर पी जाते हैं फिर परीक्षा देते हैं. व्यावहार कुशल होने का पैमाना पास करते हैं उसके बाद जन संपर्क कैसे करना है उसकी जानकारी भी लेते हैं फिर जाके उनको कुर्सी मिलती है. और विधायक जी आपकी तरह इनकी कुर्सी 5 साल में बदलने वाली थोड़ी ना होती है. यहां का मामला तो जब तक है सरकारी जान वाला है. कलेक्टर ने जो किया वह अच्छी बात है ये उनके प्रोटोकॉल का हिस्सा हो सकता है, लेकिन कलेक्टर साहब ने उनके साथ जो बदतमीजी कर दी है ये किस प्रोटोकॉल का हिस्सा है ? क्या किसी अधिकारी के दफ्तर में अपनी समस्या लेकर जाना गलत बात है? इन माफिया अधिकारियों को किन लोगों की समस्या के समाधान के लिए रखा गया है? और जिन लोगों की समस्या के समाधान के लिए इनको कलेक्टरी का ओहदा मिला है वही अगर बखूबी ना निभा सके तो फिर भौकाल किस बात का? अरे विधायक जी अब जब भी किसी समस्या के समाधान के लिए सर पास जाएं तो पहले 1 नारियल, 3 अगरबत्ती, कुछ गुलाब-गेंदे के फूल या हो सके हो कमल की पंखूड़ियां भी एक थाल में सजा कर ले जाएं, हो सके तो 1 शाल भी होना चाहिए और अपने पद का भौकाल दिखाए बिना ही किसी अर्दली के पास अर्जी अंदर भिजवा दें की 3 लोगों के साथ आपसे मिलना है. फिर देवता के मामने का इंतजार करते रहें बाहर. जब ये मान जाएं और अंदर बुलाएं तभी अपने मुंह से कोई बात निकालें, और हां बात कहने के लहजे में डर होना बहुत जरुरी है, कहीं आपकी बेबाक बात पढ़े लिखे कलेक्टर साहब को पंसद नहीं आयी तो फिर उनके मुंह से निकल जाएगा सिक्योरिटी…बाहर निकालो इनको. जब देखो मुंह उठा कर चले आते हैं.
कलेक्टर साहब को जिले में आए लंबा समय बित गया इनके पास हजारों की संख्या में लोगों की समस्या गयी है लेकिन समाधान कहां है? और शिक्षा का स्तर का तो क्या ही कहने. हर जगह धांधलियां है, लोग अपनी फरियाद भी लेकर जाते हैं लेकिन इनका भी समाधान कहां है?