हमारे देश में शिक्षा की लड़ाई दशकों पुरानी है पहले तो लोग शिक्षा पाने के लिए लड़ाई लड़ते रहे फिर जब सबको समान रुप से शिक्षा मिलने लगी तो फिर लड़ाई प्राइवेट और सरकारी शिक्षा की जंग शुरू हो गयी. अब हमारा छत्तीसगढ़ हो या फिर देश का कोई भी राज्य सभी जगह प्राइवेट या सरकारी शिक्षा को लेकर चर्चा आम है, कुछ एकाएक स्कूलों को छोड़ दें तो ज्यादातर सरकारी स्कूलों में गरीबी रेखा कार्ड वाले बच्चे ही जा रहे हैं. जिनके पास थोड़ा भी धन हैं वे अपने बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए उनको प्राइवेट स्कूल ही भेज रहे हैं. क्योंकि प्राइवेट स्कूल में फीस भले ही ज्यादा होती हो लेकिन वहां बच्चों की शिक्षा के लिए सुविधाएं बेहतर देखने के लिए मिलती हैं. वहीं हम सरकारी स्कूलों की बात करें तो ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित स्कूलों में विकास के लिए जो सरकारी पैसे आते हैं उसको समितियां या फिर विभागीय कर्मचारी डकार जाते हैं और अपने अधिकारियों से सेटिंग कर फर्जी बिल्स पास करा लेते हैं. इन सरकारी रकम से स्कूल का विकास हो ना हो लेकिन मास्टर साहेबों विकास जरुर होता है.
जांजगीर चांपा जिले के पंचगवां स्कूल का है मामला
एक RTI एक्टिविस्ट ने पंचगवां स्कूल में ‘छग. शासन समग्र शिक्षा एवं अन्य मदों से प्राप्त शाला अनुदान राशि वित्तिय वर्ष 2021-22 से 2023-24 तक क्रय समिति के अनुमोदन उपरांत क्रय किए गए सामग्रियों के बिल व्हाउचर की प्रमाणित सत्यापित छाया प्रतिलिपि प्रदान किया जाए’ इस विषय पर जानकारी चाही थी. मास्टर साहब ने बड़ी ही इमानदारी से 50 पन्नों का की जानकारी भी दी. लेकिन उन जानकारी में विकास नहीं दिखा. ये कुछ बिल्स की छायाप्रति है जिसे आप भी देख सकते हैं.
इन बिल्स में गौर करने वाली बात यह है कि इन साहब ने स्कूल की लिपाई पोताई के लिए 15000 रुपये का डारेक्ट बिल लगा दिया है जबकि सरकारी नियम में पुताई कार्य के लिए बिल बनाने का पैमाना कुछ और कहता है.
और खास बात यह भी रही कि मास्टर साहब ने स्कूल में आए रुपयों में सैकड़ों रुपयों का तो सिर्फ चाय नाश्ते पर खर्च कर दिया है
उपर दिए बिल्स में आपने ध्यान दिया होगा कि स्कूल जांजगीर चांपा में स्थित है लेकिन यह बिल्स कोरबा जिले से बनाए गए हैं. बनाने वाले को धांधली करने की इतनी जल्दबाजी थी कि कई बिल में तारीख लिखना भी भूल गए हैं
कोरबा से बनावाए गए बिल की कॉपी
बिना तारीख के बिल की कॉपी
इससे यह बात साबित होती है कि ये सारे बिल्स चालू बिल हैं. जिसे तोड़ मरोड़ कर पेश कर दिया गया है, और इन कामों में आला अधिकारी भी बिना जांच किए बिल को अपनी फाइलों में दबा दिए हैं. इसी लिए ऐसे मामलों में शिकायतों के बावजूद आला अधिकारियों के कानों में जू तक नहीं रेंगती?
खबर पढ़कर आप ही फैसला करें कि सरकारी स्कूलों के विकास ना होने के पीछे बड़ी वजह क्या रहती होगी. और इस खबर पर क्या है आपकी राय हमें कमेंट कर जरूर बताएं.