छत्तीसगढ़ की केन्द्रीय जेल बिलासपुर को प्लास्टिक मुक्त और पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए “हरित जेल अभियान” की शुरुआत की गई है। इस पहल के तहत जेल परिसर को स्वच्छ, हरित और ईको-फ्रेंडली बनाने के लिए कई नवाचार किए जा रहे हैं। एनजीओ की मदद से जेल परिसर में वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण के लिए एक सर्वे किया गया, जिसके आधार पर पर्यावरण संतुलन बनाए रखने का रोडमैप तैयार किया गया है। इस पूरी योजना का मुख्य उद्देश्य जेल को केवल बंदियों के सुधार का केंद्र ही नहीं, बल्कि बिलासपुर शहर के लिए ऑक्सीजन जोन के रूप में विकसित करना है।
जेल अधीक्षक खोमेश मांडवी के अनुसार, प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए एक अभिनव समाधान अपनाया गया है। बंदियों और उनके परिवारों द्वारा प्लास्टिक कचरे को एकत्र कर उसे ईको-ब्रिक्स में परिवर्तित किया जा रहा है। अब तक 4,000 से अधिक ईको-ब्रिक्स बनाई जा चुकी हैं, जिससे 8 एकड़ भूमि को प्लास्टिक प्रदूषण से बचाया गया है। इन ईको-ब्रिक्स का उपयोग जेल परिसर के सौंदर्यीकरण और निर्माण कार्यों में किया जा रहा है, जिससे यह परियोजना प्लास्टिक कचरे के पुनर्चक्रण और पर्यावरण संरक्षण का बेहतरीन उदाहरण बन गई है।

ग्रीन जेल का रोडमैप
स्वच्छता और पर्यावरण संतुलन को ध्यान में रखते हुए, रासायनिक सफाई उत्पादों की जगह जेल में बायो-एंजाइम का उत्पादन किया जा रहा है। अब तक 1,072 लीटर बायो-एंजाइम तैयार किया जा चुका है, जो पूरी तरह से प्राकृतिक और पर्यावरण हितैषी है। इसके अलावा, जेल परिसर में स्थित गौशाला से प्राप्त गोबर और जैविक कचरे से वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जा रहा है, जिसका उपयोग जेल के अंदर **हरियाली बढ़ाने और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है।
जेल प्रशासन का कहना है कि प्लास्टिक रिसाइक्लिंग, जल संरक्षण, पौधरोपण और हानिकारक गतिविधियों पर रोक लगाकर जेल को हरित क्षेत्र में बदला जा रहा है। भविष्य में हर्बल गार्डन और औषधीय पौधों का रोपण किया जाएगा, जिससे जेल को एक सकारात्मक और सुधारात्मक वातावरण प्रदान किया जा सके। इन प्रयासों से न केवल बंदियों के जीवन में सुधार आएगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे केन्द्रीय जेल बिलासपुर हरित जेल के रूप में एक मिसाल कायम करेगा।
केंद्रीय जेल बिलासपुर का इतिहास
केन्द्रीय जेल बिलासपुर की स्थापना 1873 में हुई थी, जब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिश सरकार ने विद्रोहों को कुचलने के लिए जेलों का विस्तार और नए कारागारों का निर्माण किया। इसी दौरान बिलासपुर जिला जेल अस्तित्व में आई, जहां कई राष्ट्रीय स्तर के स्वतंत्रता सेनानियों को कैद किया गया। इनमें पं. माखनलाल चतुर्वेदी भी शामिल थे, जिन्हें 5 जुलाई 1921 से 1 मार्च 1922 तक बैरक नंबर 9 में रखा गया। जेल में रहते हुए भी उन्होंने देशभक्ति की भावना जगाने का कार्य जारी रखा।
1930 में, क्रांति कुमार भारतीय काशी पोस्ट ऑफिस लूट मामले से बचकर बिलासपुर पहुंचे और यहां महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन को गति दी। 18 अगस्त 1930 को उन्होंने नगर पालिका टाउन हॉल और शासकीय हाई स्कूल में तिरंगा फहराया, जिसके लिए उन्हें छह महीने की सजा मिली और उन्हें बिलासपुर केंद्रीय जेल में कैद रखा गया। इस जेल ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई क्रांतिकारियों के संघर्षों का साक्षी बना।