जांजगीर-चाम्पा: बच्चे देश का भविष्य हैं लेकिन बच्चों का भविष्य बनाने में उनके गुरु, उनके शिक्षकों का बहुत बड़ा योगदान होता है. लेकिन अक्सर हम देखते हैं कि बच्चों का भविष्य संवारने वाले ये शिक्षक मोटी तनख्वाह लेने के बाद भी अपने छात्रों के भविष्य को ताक पर रखने में पीछे नहीं हटते, हम आए दिन वायरल वीडियो या खबरों में बच्चों के प्रति शिक्षकों की उदासीनता के बारे में देखते व सुनते भी आए हैं और कई जगहों से शिक्षकों की गैर जिम्मेदाराना हरकतों की शिकायतें शिक्षा विभाग के जिम्मेदार लोगों तक पहुंचती भी हैं लेकिन दशकों से आ रही प्रथा की तरह उन शिकायतों को बड़े अधिकारी रद्दी में फेंक देते हैं, फिर शुरु होता है रिश्वत का खेल, शिक्षक अपने ऊपर वाले अधिकारी को खुश कर देते हैं फिर बच्चों के हित-अहित के बारे में पूछने वाला कौन ही बच जाता है भला. दूसरी तरफ हमारी प्रदेश सरकार सरकारी स्कूलों की शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए लाखों- करोड़ों खर्च कर देती है, ताकि सरकारी स्कूलों में बच्चों की दर्ज संख्या बढ़ सके और बच्चे प्राइवेट स्कूलों की ओर न जाएं, इधर सरकारी शिक्षक भी अपनी जिम्मेदारी निभाने में पीछे नहीं हट रहे हैं वे इन सरकारी स्कूलों के बच्चों को पढ़ाने के बजाए इनसे स्कूल का काम करा रहे हैं.
ये मामला जांजगीर चांपा जिले के बलौदा का है यहां स्थित शासकीय कन्या प्राथमिक/ उच्च प्राथमिक शाला में शिक्षक अपने स्कूल की मासूम छात्राओं से खराब मौसम में काम करा रहे हैं, स्कूल जाके पता करने पर पता चला कि वहां की सुप्रीमो शिक्षिका छुट्टी पर हैं और उन्होंने किसी और को प्रभार दे रखा है, जिनको प्रभार दिया गया था उनसे बात करने पर पता चला कि “ये कैसे हो गया उन्हें पता नहीं” और वो किसी प्रकार से इस मामले में जवाब देह नहीं हैं, उन्होंने स्कूल में ही कार्यरत सहायक शिक्षक मुकेश साहू को इस काम के लिए कहा था और इस मामले का जवाब भी वही देगें. चूंकि लंच का समय था थोड़ी देर इंतजार कराने के बाद मास्टर जी भी आ ही गए और उनसे पूछने पर पता चला कि ये सामान तो उनके प्राइमरी स्कूल का है ही नहीं!
दरअसल ये सामान उसी परिसर में सटे दूसरे स्कूल का है, और इस स्कूल के जिम्मेदार शिक्षक साहब ने गलती से ये सामान अपने स्कूल में उतरवा लिया क्योंकि ट्रक में सामान लाने वाले ड्राइवर ने उनसे जल्द से जल्द सामान उतारने को कहा और बच्चों को भविष्य की शिक्षा देने वाले गुरुजी ने बिना वेरीफिकेशन के ही स्कूल के मासूम बच्चों को सामान ढोने में लगा दिया, अब सवाल ये है कि उन बच्चों को चोट लग जाती या उनके साथ कुछ हादसा हो जाता तो जिम्मेदारी किसकी होती? आगे के सवाल पर गुरुजी का कहना है कि मैं ‘अब ये सामान उतारते हुए मैं अच्छा लगूंगा क्या’, तो अब गुरुजी ही बताएं कि आखिर ये छोटे बच्चे ट्रक से सामान उतारते हुए अच्छे लग रहे हैं? ये मासूम बच्चे तो गुरु जी की आज्ञा का सम्मान बड़ी हंसी-खुशी कर रहे हैं अगर इन्हें उस वक्त थोड़ी-मोड़ी चोट भी लग जाती तो ये बच्चे हंसते हुए टाल भी देते लेकिन इतने उम्रदराज शिक्षक साहब को इस बात का अंदाजा कैसे नहीं रहा कि जल्दबाजी को परे रखकर पहले बच्चों की सुरक्षा के बारे में सोचते और सामान उतारने के लिए किसी मजदूर या फिर किसी बड़े शख्स की मदद लेते? अब यहां मास्टर साहब का जवाब और हरकत देखकर तो लग ही रहा है कि उन्होंने इन मासूमों को सरकारी कुली ही समझ लिया तभी तो बेधड़क उनसे ऐसा जोखिम भरा काम करा रहे हैं. खैर अब देखना ये है कि इस वीडियो को देखने और इस खबर को पढ़ने के बाद ऊपर के अधिकारियों का एक्शन ऐसे मामलों के लिए कैसा होगा, या फिर दशकों पूरानी सरकारी प्रथा की तरह ये उनके लिए छोटी बात ही होगी?