संवाददाता: विजय महंत
छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के बलौदा ब्लॉक में सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है। कुछ शिक्षकों ने फर्जी अनुभव प्रमाण पत्रों के आधार पर सरकारी नौकरी हासिल की है और लंबे समय से सरकारी तनख्वाह का लाभ उठा रहे हैं। इनमें दो शिक्षकों, शमा परवीन (सिद्धिकी) और चंद्र प्रकाश यादव (पिता भरत लाल यादव), के नाम विशेष रूप से सामने आया है। इनके द्वारा जमा किए गए अनुभव प्रमाण पत्र मदरसों से जारी किए गए हैं, जो हिंदी भाषी सरकारी स्कूलों में मान्यता के नियमों को पूरा नहीं करते। इसके बावजूद, ये दस्तावेज सरकारी दफ्तरों में स्वीकार कर लिए गए, जिससे नियुक्ति प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।



जानकारी के मुताबिक, शमा परवीन और चंद्र प्रकाश यादव ने अपने अनुभव प्रमाण पत्रों में ऐसी जानकारी दी है, जो न केवल संदिग्ध है, बल्कि कई जगहों पर स्पष्ट रूप से फर्जीवाड़े की ओर इशारा करती है। इनके दस्तावेजों में हस्ताक्षरों में असमानता, तारीखों में गड़बड़ी और संस्थानों की प्रामाणिकता पर सवाल उठ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में सरकारी स्कूलों में शिक्षक भर्ती के लिए अनुभव प्रमाण पत्र की मान्यता के सख्त नियम हैं। इन नियमों के तहत, केवल राज्य शिक्षा विभाग या राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) जैसे मान्यता प्राप्त संस्थानों से जारी प्रमाण पत्र ही स्वीकार्य होते हैं। madarsa से जारी प्रमाण पत्र, खासकर जब वे हिंदी माध्यम के स्कूलों के संदर्भ में हों, आमतौर पर मान्य नहीं माने जाते, जब तक कि उनकी समकक्षता सिद्ध न हो। फिर भी, इन शिक्षकों के दस्तावेजों को बिना गहन जांच के स्वीकार कर लिया गया, जो प्रशासनिक लापरवाही को दर्शाता है।
इन शिक्षकों ने अपने दस्तावेजों में जानबूझकर ऐसी जानकारी दी, जो सरकार की नजरों में धूल झोंकने के लिए पर्याप्त थी। शमा परवीन के प्रमाण पत्र में कथित तौर पर एक madarsa का उल्लेख है, जिसके अस्तित्व पर ही संदेह है। वहीं, चंद्र प्रकाश यादव के दस्तावेज में अनुभव की अवधि और हस्ताक्षरों में विरोधाभास साफ दिखाई देता है। इन दोनों के मामलों में यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या जिला शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से यह फर्जीवाड़ा संभव हो पाया। सूत्रों का दावा है कि ऐसे कई और शिक्षक हो सकते हैं, जो इसी तरह के फर्जी दस्तावेजों के सहारे नौकरी कर रहे हैं।
“जिन शिक्षकों पर हमारे बच्चों का भविष्य निर्भर है, अगर वे ही फर्जी तरीके से नौकरी पा रहे हैं, तो शिक्षा व्यवस्था का क्या हाल होगा?” इस संबंध में जिला शिक्षा अधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन कोई आधिकारिक बयान नहीं मिल सका।
इस तरह के फर्जीवाड़े को रोकने के लिए दस्तावेजों की गहन जांच और पारदर्शी सत्यापन प्रक्रिया जरूरी है। अगर शमा परवीन और चंद्र प्रकाश यादव के खिलाफ आरोप सिद्ध होते हैं, तो इनके खिलाफ न केवल नौकरी से बर्खास्तगी, बल्कि कानूनी कार्रवाई और वेतन की वसूली भी संभव है। इस मामले में आगे की जांच और ठोस कदम उठाने की मांग तेज हो रही है, ताकि फर्जीवाड़े का यह खेल बंद हो और शिक्षा व्यवस्था में विश्वास बहाल हो सके।