इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा कि स्तन दबाना और पायजामे की डोरी तोड़ना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता, हालांकि यह किसी महिला को नग्न करने या उसके कपड़े उतारने की मंशा से हमला करने के अपराध के तहत आता है। पूरे मामले पर इस बयान के बाद से कई नेताओं, सामाजिक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट से मामले का संज्ञान लेने और फैसले को बदलने की मांग की है।
क्या कहा कोर्ट ने?
न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकलपीठ ने कहा कि किसी अपराध की तैयारी और उसे अंजाम देने के बीच एक अंतर होता है। उन्होंने कहा, “मौजूदा मामले में आरोपियों के खिलाफ बलात्कार के प्रयास का मामला नहीं बनता, क्योंकि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि अपराध की योजना से आगे बढ़कर उसे अंजाम देने का प्रयास किया गया था।”
मामले की पृष्ठभूमि
मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले का है, जहां जून 2023 में POCSO कोर्ट ने एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के आरोप में दो युवकों को समन जारी किया था। इसके अलावा, एक आरोपी के पिता को आपराधिक धमकी देने के आरोप में भी तलब किया गया था।
यह मामला नवंबर 2021 का है, जब पीड़िता की मां ने आरोप लगाया कि उसकी बेटी को गांव के ही दो युवक घर छोड़ने के बहाने ले गए। रास्ते में उन्होंने उसका स्तन दबाया और पायजामे की डोरी तोड़ दी तथा उसे पुलिया के नीचे घसीटने की कोशिश की। लड़की की चीख-पुकार सुनकर कुछ राहगीर मौके पर पहुंचे, जिससे आरोपी भाग निकले।
पीड़िता की मां के अनुसार, जब उसने आरोपियों में से एक के पिता से शिकायत की, तो उसने उसे जान से मारने की धमकी दी। महिला ने पुलिस से शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसके बाद मार्च 2022 में अदालत के आदेश पर मामला दर्ज किया गया।
हाईकोर्ट में चुनौती और फैसला
आरोपियों ने POCSO कोर्ट के समन को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनका दावा था कि दोनों परिवारों के बीच पुरानी रंजिश है और यह मामला बदले की भावना से गढ़ी गई कहानी है।
हाईकोर्ट ने मामले की गहराई से जांच करने के बाद कहा कि यह बलात्कार का प्रयास नहीं, बल्कि महिला को कपड़े उतारने के इरादे से हमला करने का मामला है। न्यायालय ने POCSO कोर्ट को निर्देश दिया कि IPC की धारा 376 (बलात्कार) और POCSO एक्ट की धारा 18 (बलात्कार के प्रयास) के तहत दर्ज आरोपों को हटाकर आरोपियों पर IPC की धारा 354(B) (महिला की मर्यादा भंग करने के लिए हमला) और POCSO एक्ट की धारा 9/10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत कार्रवाई की जाए।
क्या बदलेगा इस फैसले से?
इस आदेश के बाद आरोपियों पर बलात्कार का मुकदमा नहीं चलेगा, बल्कि उन पर छेड़छाड़ और अभद्र व्यवहार के आरोपों के तहत मामला चलेगा।