नेपाल में हाल ही में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों ने देश की राजनीतिक स्थिति को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरकर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की सुरक्षा में की गई कटौती का विरोध कर रहे हैं और देश में राजशाही की पुनः स्थापना की मांग कर रहे हैं। सरकार के इस फैसले ने न केवल नेपाल के राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है, बल्कि जनता के एक बड़े वर्ग में असंतोष भी पैदा किया है।
नेपाल में क्यों भड़क रहे हैं प्रदर्शन?
नेपाल में राजशाही समर्थक प्रदर्शन लंबे समय से चल रहे हैं, लेकिन हाल ही में इसमें अचानक तेजी आ गई है। इसका मुख्य कारण सरकार द्वारा पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की सुरक्षा को घटाना बताया जा रहा है। नेपाल की संघीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के आलोचक और राजशाही समर्थक इस फैसले को पूर्व सम्राट के अपमान के रूप में देख रहे हैं। इसके अलावा, बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता ने जनता के गुस्से को और भड़का दिया है।

पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की सुरक्षा में कटौती
नेपाल सरकार ने हाल ही में पूर्व सम्राट ज्ञानेंद्र शाह की सुरक्षा में कमी करने का फैसला किया, जिससे उनके समर्थकों में भारी आक्रोश फैल गया। पहले जहां उनके साथ भारी सुरक्षा बल तैनात रहता था, अब उसमें काफी कटौती कर दी गई है। नेपाल की पुलिस और गृह मंत्रालय ने इस कदम को तर्कसंगत बताते हुए कहा कि वर्तमान में नेपाल एक लोकतांत्रिक गणराज्य है और पूर्व राजा को अतिरिक्त सुरक्षा देने की आवश्यकता नहीं है।
नेपाल की राजनीति और राजशाही की वापसी की मांग

नेपाल 2008 में राजशाही को समाप्त कर एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बना था, लेकिन राजशाही समर्थक गुट अब भी देश में इसके पुनर्स्थापन की मांग कर रहे हैं। वे वर्तमान सरकार को भ्रष्ट और अक्षम मानते हैं, और उनका दावा है कि राजशाही के तहत नेपाल अधिक स्थिर और समृद्ध था। हालांकि, नेपाल की मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां इस विचारधारा के खिलाफ हैं और लोकतंत्र को नेपाल की प्रगति के लिए आवश्यक मानती हैं।
सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच तनाव
सरकार ने विरोध प्रदर्शनों को नियंत्रित करने के लिए कई जगहों पर कर्फ्यू लगाया और पुलिस बल को तैनात किया। कई स्थानों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें भी हुईं, जिनमें कई लोग घायल हुए हैं। राजशाही समर्थक समूहों का कहना है कि सरकार उनकी आवाज को दबाने का प्रयास कर रही है, जबकि सरकार इसे कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम बता रही है।