भक्त माता कर्मा: एक अनन्य भक्त की अनोखी कहानी
भक्त माता कर्मा! नाम सुनते ही मन में भक्ति की एक ऐसी लहर उठती है, जो दिल को छू लेती है। ये वो शख्सियत हैं, जिन्होंने अपनी साधना और समर्पण से न सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण को अपने सामने बुलाया, बल्कि उन्हें अपने हाथों से खिचड़ी खिलाकर इतिहास में एक अलग पहचान बनाई। छत्तीसगढ़ से लेकर देश के कोने-कोने तक, इनकी जयंती का उत्सव भक्ति और उल्लास का प्रतीक बन चुका है। तो चलिए, आज इस लेख में भक्त माता कर्मा के जीवन की रोचक कहानी, उनकी जयंती का महत्व, छत्तीसगढ़ से उनका खास रिश्ता और देश भर में उनके उत्सव की धूम को जानते हैं। तैयार हैं ना? तो बांध लीजिए सीट बेल्ट, क्योंकि ये सफर मजेदार होने वाला है!
भक्त माता कर्मा कौन थीं? एक नजर उनके जीवन पर
भक्त माता कर्मा कोई साधारण महिला नहीं थीं। इनका जन्म करीब 1000 साल पहले, संवत् 1073 (सन् 1017 ई.) में हुआ था। कहते हैं कि ये उत्तर प्रदेश के झांसी में एक समृद्ध तेली व्यापारी श्री राम साहू के घर में चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी को पैदा हुई थीं। बचपन से ही कर्मा के मन में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गहरी श्रद्धा थी। जहां बच्चे खेल-कूद में मस्त रहते थे, वहीं कर्मा भक्ति में डूबी रहती थीं। उनकी भक्ति की मिसाल ऐसी थी कि लोग उन्हें “मारवाड़ की मीरा” भी कहने लगे।
कहानी में ट्विस्ट तब आया, जब उनके पिता ने उनका विवाह मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के नरवर में रहने वाले पद्मजी साहू से कर दिया। लेकिन शादी के बाद भी कर्मा की भक्ति कम नहीं हुई। एक दिन वो घर के कामों से फ्री होकर श्रीकृष्ण के भजन गा रही थीं। उनके पति ने मजाक में भगवान की मूर्ति छिपा दी। लेकिन कर्मा की भक्ति ऐसी थी कि भगवान खुद उनके सामने प्रकट हो गए और खिचड़ी खाने बैठ गए। ये देखकर उनके पति और परिवार वाले दंग रह गए। इसके बाद कर्मा की कीर्ति चारों तरफ फैल गई।
एक और किंवदंती है कि जब उनके पति की मृत्यु हो गई, तो कर्मा ने श्रीकृष्ण से अपने सुहाग की मांग की। उनकी पुकार सुनकर भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और वो जगन्नाथपुरी चली गईं। वहां समुद्र किनारे रहकर उन्होंने बालकृष्ण को खिचड़ी खिलाई और उनकी लीलाओं का आनंद लिया। उनकी ये भक्ति आज भी लोगों के लिए प्रेरणा है।
उनकी जयंती कब मनाई जाती है? तारीख और त्योहार की धूम
भक्त माता कर्मा की जयंती हर साल चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी को मनाई जाती है। साल 2025 में ये तारीख 18 मार्च को पड़ रही है। इस दिन देश भर में साहू (तेली) समाज के लोग धूमधाम से उत्सव मनाते हैं। सुबह से ही मंदिरों में पूजा-अर्चना होती है, खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और भक्तगण भजन-कीर्तन में डूब जाते हैं। कई जगहों पर शोभायात्रा और कलश यात्रा निकाली जाती है, जिसमें महिलाएं और युवा बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
इस दिन का खास रिवाज है खिचड़ी बनाना और उसे प्रसाद के रूप में बांटना। ऐसा माना जाता है कि माता कर्मा ने श्रीकृष्ण को खिचड़ी खिलाई थी, इसलिए ये परंपरा आज तक चली आ रही है। कुछ जगहों पर फिल्में दिखाई जाती हैं, जैसे “मेरी मां कर्मा”, जो उनकी जीवनी पर आधारित है। कुल मिलाकर, ये दिन भक्ति, एकता और खुशियों का संगम होता है।
छत्तीसगढ़ के लिए क्यों खास हैं भक्त माता कर्मा?
अब बात करते हैं कि आखिर छत्तीसगढ़ के लिए माता कर्मा इतनी खास क्यों हैं। छत्तीसगढ़ में साहू समाज की बड़ी आबादी है, और ये समाज माता कर्मा को अपनी कुलदेवी मानता है। यहां के लोग मानते हैं कि माता कर्मा का आशीर्वाद ही उनकी मेहनत और समृद्धि का कारण है। चाहे खेती हो, व्यापार हो या सामाजिक एकता, छत्तीसगढ़ के साहू समाज का हर कदम माता कर्मा की प्रेरणा से जुड़ा है।
यहां की संस्कृति में माता कर्मा की कहानियां लोकगीतों और कथाओं में बसी हैं। उनकी जयंती पर छत्तीसगढ़ के गांव-शहरों में उत्साह देखते ही बनता है। रायपुर, महासमुंद, धमतरी जैसे जिलों में भव्य आयोजन होते हैं। शोभायात्राएं निकलती हैं, मंदिरों में भीड़ लगती है और लोग एक-दूसरे को माता कर्मा की जयंती की बधाई देते हैं। छत्तीसगढ़ के शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने एक बार कहा था, “माता कर्मा के आशीर्वाद से ही साहू समाज आज देश और प्रदेश की तरक्की में योगदान दे रहा है।” ये बात इस राज्य के लिए उनके महत्व को और गहरा करती है।
एक और वजह है कि छत्तीसगढ़ में मेहनत और भक्ति को बहुत सम्मान दिया जाता है, और माता कर्मा इन दोनों की मिसाल हैं। उनकी कहानी यहां के लोगों को सिखाती है कि सच्ची लगन से कुछ भी हासिल किया जा सकता है—चाहे वो भगवान के दर्शन ही क्यों न हों!
देश में और कहां-कहां मनाई जाती है जयंती?
माता कर्मा की जयंती सिर्फ छत्तीसगढ़ तक सीमित नहीं है। देश के कई हिस्सों में साहू और तेली समाज इसे धूमधाम से मनाता है। आइए, एक नजर डालते हैं:
- उत्तर प्रदेश: झांसी, जहां माता कर्मा का जन्म हुआ, वहां खास उत्सव होता है। मंदिरों में पूजा और खिचड़ी वितरण की परंपरा जोरों पर रहती है।
- मध्य प्रदेश: शिवपुरी और नरवर में उनके विवाह से जुड़े होने के कारण भव्य आयोजन होते हैं। शोभायात्राएं और भजन संध्या खास आकर्षण होते हैं।
- राजस्थान: नागौर जिले के कालवा गांव में कुछ लोग उन्हें जाट परिवार से जोड़ते हैं और वहां भी जयंती मनाई जाती है।
- झारखंड और ओडिशा: यहां साहू समाज के साथ-साथ कुछ आदिवासी समुदाय भी कर्मा पर्व मनाते हैं, जो माता कर्मा से प्रेरित माना जाता है।
- महाराष्ट्र और गुजरात: इन राज्यों में तेली समाज के लोग छोटे स्तर पर पूजा और उत्सव का आयोजन करते हैं।
हर जगह माता कर्मा की कहानी थोड़ी अलग हो सकती है, लेकिन भक्ति का भाव एक ही है। कहीं उन्हें श्रीकृष्ण की भक्त माना जाता है, तो कहीं समाज सुधारक के रूप में। लेकिन उनकी जयंती हर जगह भक्तों के लिए एक खास मौका होती है, जब वो उनकी भक्ति और समर्पण को याद करते हैं।
एक संदेश जो माता कर्मा हमें देती हैं
माता कर्मा की कहानी सिर्फ भक्ति की नहीं, बल्कि हिम्मत, मेहनत और सच्चाई की भी है। वो हमें सिखाती हैं कि मुश्किल वक्त में भी अपने विश्वास को नहीं छोड़ना चाहिए। उनकी जिंदगी बताती है कि भगवान किसी के अमीर-गरीब होने से नहीं, बल्कि सच्चे दिल से बुलाने से मिलते हैं। आज के दौर में, जब लोग जल्दी हार मान लेते हैं, माता कर्मा की कहानी एक मोटिवेशन है।
तो भाई, अगली बार जब उनकी जयंती आए, तो खिचड़ी का भोग लगाना और उनके भजन गाना मत भूलना। उनकी कहानी में वो जादू है, जो आपको भी भक्ति के रंग में रंग देगा। छत्तीसगढ़ हो या देश का कोई और कोना, माता कर्मा का नाम हर जगह गूंजता है—और गूंजना भी चाहिए। है ना?