गांव की भोली-भाली जनता अपने बेहतर विकास के लिए अपना मुखिया यानी सरपंच का चुनाव करती है, लेकिन ये सरपंच अपने पद पर आसीन होने के बाद अपनी ही जनता को चुना लगाने से बाज नहीं आते, लेकिन आज हम जिस सरपंच साहब की बात कर रहे हैं उसने अपने कार्यकाल में जनता को तो चूना लगाया ही है साथ में इस चलाक सरपंच ने सरकार को भी चूना लगा दिया, समस्या इस बात की है कि कागज पर भरोसा करने वाली हमारी कानून व्यवस्था भी अब तक सरपंच के फर्जी दस्तावेजों को पकड़ नहीं पायी है.
क्या है मामला –
बिलासपुर जिले का एक शख्स जिसका नाम स्कूली दाखिल खारिज के अनुसार मुरली मनोहर भील है जो कि अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत आता है, लेकिन साहब ने निरतू पंचायत में सरपंच का चुनाव जितने के लिए फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल करते हुए खुद का सरनेम बिंद बता दिया जो कि ओबीसी के अंतर्गत आता है, क्योंकि साल 2020 में निरतू सीट के लिए आयोग द्वारा ओबीसी सीट को रिजर्व किया गया था इसी मौके का फायदा उठाते हुए मुरली मनोहर भील ने खूद को मुरली मनोहर बिंद यानी ओबीसी बता कर चुनाव में नामांकन भर दिया और मुरली मनोहर ओबीसी बनकर गजब चुनाव प्रचार करते हुए पंचायत से जीत भी गया, और अपने पद की शपथ भी ओबीसी बनकर ही लिया. अब सरपंच साहब का कार्यकाल समाप्ति की ओर है लेकिन अब तक जिम्मेदार अधिकारी इस मामले से अनजान होने का दिखावा कर रहे हैं और मुरली मनोहर के दस्तावेजों को पकड़ पाने में असमर्थ हैं.
कहां का है मामला-
मामला बिलासपुर जिले के निरतू ग्राम पंचायत का है जहां के वर्तमान सरपंच मुरली मनोहर ने सरपंच बनने के लिए अधिकारियों के सामने पूरा फर्जी दस्तावेज जमा करते हुए खुद को ओबीसी बताया है. दरअसल मुरली मनोहर के स्कूली दस्तावेज में उसकी जाति में साफ साफ भील लिखा हुआ है जो कि अनुसुचित जनजाति के अंतर्गत आता है.
सरपंच के रंगीन कारनामें
मुरली मनोहर भील जाति में पैदा हुआ और सरपंच का पद पाने के लिए रिजर्व सीट ओबीसी के लिए फर्जी दस्तावेज का सहारा लेकर मुरली मनोहर ओबीसी बनकर चुनाव जीत गया, उसके बाद मुरली मनोहर को अपनी जाति फिर से याद आ गयी और सभी सरकारी सुविधाओं का लाभ लेने के लिए फिर से मुरली मनोहर ने खुद को भील आदिवासी बना लिया और परिवार सहित अनुसुचित जनजाति बनकर सुविधाओं का भरपूर लाभ लेते रहे, सरपंच सामने आ आ कर सरकारी सिस्टम को गुमराह कर रहा है लेकिन अब तक कागज के टुकड़ों पर भरोसा करने वाले जांच अधिकारियों की नजर मुरली मनोहर के रंगीन कारनमों पर नहीं पड़ी?
फर्जी दस्तावेजों का विवरण
यह मुरली मनोहर पिता परस राम का स्कूल दाखिल खारिज है जिसमें साफ साफ मुरली मनोहर की जाति में भील लिखा गया है-
साथ ही यह मुरली मनोहर के छोटे भाई रमेश कुमार पिता परस राम का स्कूली दाखिल खारिज है जिसमें उसकी भी जाति में भील लिखा गया है-
सूत्र के हवाले से मिले स्कूल के रजिस्टर की सत्यापित कॉपी में भी मुरली मनोहर की जाति में भील लिखा गया है जो कि छत्तीसगढ़ में जनजाति के अंतर्गत आता है
यह पोस्ट हमें किसी की फेसबुक अकाउंट से मिला है जहां पर मुरली मनोहर ने खुद को बिंद बताते हुए चुनाव प्रचार किया है-
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सरकारी दस्तावेजों में कहीं अनुसूचित जनजाति तो कहीं ओबीसी? सच क्या है?
यहां मुरली मनोहर के कुछ दस्तावेजों पर नजर डालिए जहां सरपंच ने खूद को कहीं आदिवासी तो कहीं ओबीसी दर्शाया है –
यह मुरली मनोहर का मनरेगा जॉब कार्ड है जिसमें उसके घर के सदस्यों और मुरली मनोहर पिता परसराम की जाति में ST लिखा हुआ है-
यह मुरली मनोहर का राशन कार्ड है जिसमें उनकी जाति में तो ओबीसी लिखा है लेकिन राशन कार्ड दस्तावेज में उनके पिता की जाति के सामने अनुसूचित जनजाति लिखा है, अब सोचने वाली बात यह है कि जिस साहब ने इनका राशन कार्ड बनाया क्या उन्होंने ने बिना नाम, सरनेम, जाति देखे बिना ही पास का मुहर लगा दिया ?
अब देखिए मुरली मनोहर के घर के अन्य सदस्य का राशन कार्ड –
यह राशन कार्ड मुरली मनोहर की माता पिता का है जिसमें उनकी जाति वर्ग के सामने अनुसूचित जनजाति लिखा हुआ है
एक ही आदमी कहीं अनुसूचित जनजाति में आ रहा है तो कहीं फायदानुसार ओबीसी बन जा रहा है यह सब कारनामा सरकारी जानकारी में हो रहा है लेकिन अब तक सरकार से मोटी तनख्वा लेने वरिष्ठ अधिकारियों की नजर इतने बड़े घोटाले पर कैसे नहीं पड़ी यह सोचने वाली बात है, जबकि सरपंच साहब के पास पंचायत का काम कराने के लिए कई मदो से पैसे भी आते रहे हैं लेकिन क्या किसी अधिकारी ने जांच किया है कि उनकी पंचायत में हुए कार्य सही में हुए हैं या फिर मुरली मनोहर की जाति की तरह ही फर्जीवाड़े की भेंट चढ़ गए हैं? और अब इस खबर के बाद सरकारी जिम्मेदार अधिकारी जांच की ओर अपना कदम बढ़ाएंगे या रोजमर्रा की घटना की तरह इस बड़े मामले को भी डस्टबीन में फेंक देंगे?