सुप्रीम कोर्ट ने जिला अदालतों के जजों के वेतन और पेंशन को लेकर सरकारों के रवैये पर निराशा जताई है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकारों के पास उन योजनाओं के लिए पैसे हैं जो चुनावों के समय मुफ्त बांटी जाती हैं, लेकिन जब जजों के वेतन और पेंशन की बात आती है तो आर्थिक संकट का हवाला दिया जाता है। कोर्ट ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में विभिन्न पार्टियों की ओर से दी जा रही मुफ्त योजनाओं का उदाहरण देते हुए सरकारों के इस दोहरे मापदंड पर चिंता जताई।
ऑल इंडिया जजेस एसोसिएशन द्वारा 2015 में दाखिल की गई याचिका में जजों के कम वेतन और उचित पेंशन के अभाव की समस्या उठाई गई थी। याचिका में यह भी कहा गया था कि पूरे देश में जजों के वेतन और पेंशन की नीति समान नहीं है, जिससे असमानता का सवाल उठता है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अपनी सहायता के लिए एक वरिष्ठ वकील को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया है ताकि इस मुद्दे का हल निकाला जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार यदि भविष्य में जजों के वेतन और पेंशन से संबंधित कोई कदम उठाती है, तो इसे कोर्ट के समक्ष रखा जाए। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने कहा कि मुफ्त योजनाएं अस्थायी होती हैं, जबकि वेतन और पेंशन में वृद्धि स्थायी विषय है, और इसके राजस्व पर प्रभाव का आकलन करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि चूंकि यह मामला लंबे समय से लंबित है, अब इसकी सुनवाई स्थगित नहीं की जाएगी।
Source : PTI