जिंदगी में बहुत टेंशन है। पहले पढ़ाई का टेंशन, फिर ग्रेड्स का, उसके बाद जॉब और फिर सेटल होने और शादी का टेंशन। इतनी सारी मारा-मारी के बीच लोगों को जब सुकून के पल बिताने होते हैं तो फिल्मों से बेहतरीन जरिया और क्या हो सकता है। वैसे तो ओटीटी ने लोगों को वेब सीरीज और शॉर्ट फिल्मों जैसे कई ऑप्शंस परोसे हैं लेकिन फिल्मों से भारतीयों का खास लगाव रहा है। अगर आप भी फिल्मों के लिए आवारा-पागल-दीवाना हैं और अच्छी फिल्में देखकर आपका भी जिया धड़क-धड़क जाता है तो 15 अगस्त को सिनेमाघर में रिलीज हुई स्त्री 2 आपके लिए ही बनी है।
स्त्री 2 की कहानी का पोस्टमार्टम
बात करें कहानी की तो इस बार निरेन भट्ट ने अपनी कलम से चंदेरी में स्त्री के आने की वजह बताई है और साथ ही सरकटे के प्रकोप की भी कहानी को इससे कनेक्ट किया है। सबसे अच्छी बात ये ही कि स्त्री मल्टीवर्स में भेड़िया को भी जगह दी गई है। कुल मिलाकर पहले भाग और दूसरे भाग के साथ कनेक्शन एकदम सही बैठा है। किसी भी तरह का शॉर्ट सर्किट इसमें होता हुआ नजर नहीं आता है।
स्त्री 2 के कलाकारों के दांव पेंच
अगर आप भी चाहते हैं कि हंसते-हंसते आपकी पसलियां दर्द करने लगे। जब आप थिएटर से बाहर आएं तो हंसते-हंसते आपका मुंह दर्द कर रहा हो। तो स्त्री 2 से बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता। राजकुमार राव, अपारशक्ति खुराना, अभिषेक बनर्जी और पंकज त्रिपाठी के प्रेजेंस आपको बोर नहीं होने देगी। पहली ऐसी फिल्म है जो पहले सीन से ही अपने दर्शकों को बांधकर रखती है। हां, श्रद्धा कपूर की एंट्री पर सीटियां तो बजेंगी ही बजेंगी। लेकिन यारी, बेकारी, इमोशन, ड्रामा, हंगामा से भरपूर ये फिल्म आपको बिट्टू और जना जैसे किरदार से भी प्यार करने पर मजबूर कर देगी। कुल मिलाकर ये फिल्म आपको कई दिनों तक गुदगुदाती रहेगी।
स्त्री 2 स्पॉइलर अलर्ट
फिल्म के सरप्राइज एलिमेंट की भी बात कर ही लेते हैं। फिल्म में वरुण धवन, अक्षय कुमार और तमन्ना भाटिया का केमियो है। वरुण धवन भेड़िया की फ्रेंचाइजी से रक्षक बनकर आए हैं, वहीं तमन्ना भाटिया भी इसमें शमा एक नर्तकी का किरदार निभा रही हैं। बात करें खिलाड़ी कुमार की तो पहले भाग से इस भाग को कनेक्ट करने की वो अहम कड़ी हैं। सरकटा जिनका अपना पूर्वज है। काफी लंबे वक्त बाद अक्षय कुमार को एक क्लीन कॉमेडी करते हुए देखा जा सकता है।
स्त्री 2 का बोरिंग एलिमेंट
पूरी फिल्म में एक चीज जो थोड़ा सा दर्शकों को अटपटी लग सकती है वो है क्लाइमेक्स। डायरेक्टर अमर कौशिक ने जहां एक्टर्स को स्क्रीन पर बढ़िया स्पेस दिया है। वहीं सरकटे का अंत करने के लिए काफी जद्दोजहद करते हुए दिखाई दिए। सीन को जहां थोड़ा छोटा किया जा सकता था। वहीं वो च्युइंगम की तरह खिंचता ही चला गया और थोड़ी देर बार उसमें इंटरेस्ट नामक स्वाद खत्म हो गया। बाकि कुल मिलाकर हर सीन में आपका मुंह खुला का खुला ही रहने वाला है। ये नाचने गाने और हंसने गुदगुदाने वाली फिल्म है, कृपया लॉजिक ढूंढने वाले घर पर ही रहें। हॉरर कॉमेडी की विधा में ये एक मील का पत्थर साबित होगी।