प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को मिला 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार

रायपुर: हिंदी साहित्य के प्रख्यात कवि और कथाकार विनोद कुमार शुक्ल को वर्ष 2024 का ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। नई दिल्ली में शनिवार को ज्ञानपीठ चयन समिति ने इस प्रतिष्ठित पुरस्कार की घोषणा की। यह पहली बार है जब छत्तीसगढ़ के किसी साहित्यकार को यह सम्मान मिला है।

हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था। वह पिछले पांच दशकों से हिंदी साहित्य में सक्रिय हैं। उनकी लेखनी में आम आदमी के जीवन की संवेदनाएं और सरल भाषा में गहरी अनुभूति देखने को मिलती है।

उनका पहला कविता संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ 1971 में प्रकाशित हुआ था। इसके अलावा, ‘पेड़ पर कमरा’, ‘महाविद्यालय’ जैसे उनके कहानी संग्रह भी चर्चित रहे हैं। उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ शामिल हैं। इनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ पर प्रसिद्ध फिल्मकार मणि कौल ने फिल्म भी बनाई थी।

ज्ञानपीठ पुरस्कार का महत्व
ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय साहित्य का सर्वोच्च सम्मान है, जो देश की किसी भी भाषा के साहित्यकार को दिया जाता है। इस पुरस्कार के तहत 11 लाख रुपये नकद, वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।


ज्ञानपीठ पुरस्कार की घोषणा के बाद हिंदी साहित्य प्रेमियों में खुशी की लहर दौड़ गई। साहित्यकारों और लेखकों ने इसे हिंदी साहित्य के लिए गर्व की बात बताया। साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता विनोद कुमार शुक्ल को पहले भी कई महत्वपूर्ण सम्मान मिल चुके हैं, लेकिन ज्ञानपीठ पुरस्कार उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जा रहा है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और साहित्य प्रेमियों ने भी इस उपलब्धि पर उन्हें बधाई दी है। साहित्य जगत में उनके लेखन को हमेशा नई दृष्टि से देखा जाता रहा है, और इस सम्मान ने उनकी प्रतिष्ठा को और ऊंचा कर दिया है।

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